Thursday, February 2, 2017

मीडिया से 'मिडवे' तक का सफर... जब किसी के सपने मर जाए...पढ़िए विनय पांडे की संघर्षभरी दास्तान

 ‘ग्राउंड ज़ीरो’ के तीसरे एपिसोड में पढ़िए विनय पांडे की कहानी ।  कहते हैं ‘सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना’ लेकिन जब ये कहावत वाकई में किसी इंसान के लिए सच साबित हो जाए तो ज़रा सोचिए उस इंसान पर क्या बीतती होगी । आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स से रूबरू करवाएंगे जिनके सपनों की उड़ान ने परवाज़ भरना शुरु तो किया लेकिन उसके मुकम्मल मंज़िल तक पहुंचने से पहले ही मजलूम वक्त ने बेरहमी से उसके पर कतर दिए । विनय पांडे उन्हीं लोगों में से एक हैं, जो दिल से पत्रकारिता करना चाहते थे। बाराबंकी के छोटे से कस्बे से दिल्ली आने का उनका एक ही मकसद था पत्रकार बनना । पढ़ाई करने के बाद मनपसंद फील्ड में काम भी मिल गया । पैशन को प्रोफेशन बनाया । सब कुछ सही चल रहा था लेकिन अचानक न जाने किसकी नज़र लगी कि तीन साल की नौकरी के बाद ही इस्तीफा देना पड़ा । उम्र के जिस पड़ाव पर लोग मंज़िलरूपी जीवन की बुनियाद रखना शुरु करते हैं उस उम्र में विनय को बोरिया-बिस्तर समेटकर अपने गांव लौटना पड़ा । विनय एक ऐसे धर्मसंकट में पड़ गए थे जहां पर डिसीजन लेना टेढ़ी खीर साबित हो रहा था । एक तरफ विनय का करियर था जो अभी-अभी शुरु हुआ था और कच्ची कली की भांति जीवन की कोंपलों में से बाहर निकलकर विस्तार करने के लिए व्याकुल था तो दूसरी तरफ गांव में विनय के घर पर कुछ ऐसी विकट समस्याएं मुंह बाए खड़ी हो गई थीं जिनसे पार पाना विनय के लिए नामुमकिन हो रहा था । आखिर विनय के पिताजी ने ऐसी कौन सी गलती की कि बेटे को पसंदीदा करियर को ही दांव पर लगाना पड़ गया । आखिर ऐसी कौन सी सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाने के लिए विनय ने अपने सपनों की बलि चढ़ा दी, और फिर शुरु हुआ मीडिया से ‘मिडवे’ तक का सफर । जानने के लिए पढ़िए ये पूरा इंटरव्यू । क्योंकि ‘ग्राउंड ज़ीरो’ ने की है पूरी पड़ताल

सवाल- सबसे पहले आप अपने बारे में बताइए ।

जवाब- मेरा नाम विनय पांडे है । प्यार से सब वीरु बुलाते हैं । मूलरूप से बाराबंकी के रामसनेहीघाट का रहने वाला हूं।

सवाल- पढ़ाई-लिखाई कहां से हुई ?

जवाब- पटेल पंचायती इंटर कॉलेज से हाईस्कूल और सरस्वती विद्य़ा मंदिर बाराबंकी से इंटरमीडियट किया। लखनऊ यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री और इंग्लिश में ग्रेजुएशन किया। नेशनल ब्रॉडकास्ट एकेडमी दिल्ली से मास कम्यूनिकेशन किया ।

सवाल- आपका सपना था एक बड़ा जर्नलिस्ट बनने का, जिसकी शुरुआत भी हुई लेकिन हमेशा-हमेशा के लिए आपने ये फील्ड छोड़ दिया । लोग अपने सपनों को पूरा करने के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं लेकिन आपको ऐसा क्या पाना था कि आपने अपने सपनों को ही दांव पर लगा दिया ? क्योंकि एक बार नौकरी पकड़ने के बाद लोगों के लिए इसे छोड़ना बड़ा मुश्किल होता है वो भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे फील्ड में । ऐसी भी क्या मजबूरी थी ?

जवाब- जब मैंने 2014 में नौकरी छोड़ी तो उसे लेकर भड़ास4मीडिया ने एक पोस्ट छापी कि ‘विनय पांडे ने मीडिया छोड़ शुरु किया ढाबा’। उस स्टोरी को पढ़कर लोगों को लगा कि मुझे मीडिया रास नहीं आया इसलिए उसने मीडिया को छोड़कर ढाबे का कारोबार शुरु किया । लेकिन सच बताऊं पत्रकारिता मेरा पहला प्यार है । ये सच है कि आज मीडिया की हालत दयनीय है लेकिन उसके बावजूद में डटे रहकर इसी क्षेत्र में कुछ करना चाहता था। क्योंकि ये मुझे दिल से अच्छा लगता था । लेकिन कुछ ऐसी पारिवारिक समस्याओं ने मुझे घेरा कि अपने करियर को ही दांव पर लगाना पड़ा।


सवाल- आखिर क्या थी वो मजबूरी जिसकी वजह से आपको दिल्ली छोड़कर बैक टू बाराबंकी जाना पड़ा ?

जवाब- घर पर खेतीबाड़ी काफी है, चाहता तो घर पर ही रहकर खेती करता तो भी आराम से गुजारा हो जाता लेकिन जुनून था पत्रकारिता करने का सो दिल्ली चला आया । मेरे पिता मेरे आदर्श हैं लेकिन उनकी एक बुराई हमारे ऊपर बहुत भारी पड़ गई । दरअसल उन्हें शराब पीने की बुरी लत है। जिसकी वजह से हमारे गांव की ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने औने-पौने दामों में बेच दिया और जो बची उसे पास के ही एक जानने वाले को (नाम का ज़िक्र नहीं करना चाहता) ढाबे के लिए एग्रीमेंट कर दी । ये बात पता चलते ही मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। दिनोंदिन चिंता खाए जा रही थी। पूरे इलाके, समाज और रिश्तेदारी में बदनामी हो रही थी सो अलग । आखिर हमारे पुरखों की ज़मीन हाथ से जो जा रही थी। ज़मीन हमारी माता है, हमारी पहचान है, हमारी जड़ है, जीविका और घर-परिवार चलाने का ज़रिया है । जब वो ही नहीं रहेगी तो आखिर हम लोग ज़िंदा कैसे रहेंगे । एक तरफ करियर के शुरुआती दौर में दिल्ली में संघर्ष तो दूसरी तरफ बाप-दादा की हाथ से निकलती ज़मीन को देखकर मेरी मानसिक स्थिति खराब सी हो गई । इस महासंकट से निकलना नामुमकिन हो रहा था। मैं बड़े धर्मसंकट में पड़ गया । आखिर क्या किया जाए । जब तक नौकरी नहीं मिली थी तो रिश्तेदार ताने मारते थे अब जब नौकरी मिली तो वही रिश्तेदार फिर ताने मारने लगे कि बताओ इधर घर लुट रहा है उधर बेटा दिल्ली में नौकरी कर रहा है । ये नहीं नौकरी छोड़ के पहले घर संभाले । काफी सोच विचार कर दिल पर पत्थर रखकर करियर को दांव पर लगाना पड़ा।


सवाल- कैसे आपने हालात पर काबू पाया ? क्या खोई हुई ज़मीन वापस लाने में सफल हुए  ?

जवाब- दिल्ली से गांव पहुंचा तो घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी । पिताजी सारी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ चुके थे । मैं अकेला और परेशानियां अनेक । या तो मैं भी सरेंडर कर देता या फिर उन परेशानियों का डटकर मुकाबला करता । सो मैंने हिम्मत जुटायी और लग गया उनसे दो-दो हाथ करने में। इतनी कम उम्र में परेशानियों का ऐसा पहाड़ देखकर दिल दहल जाता था । लेकिन मैं हार मानने वाला नहीं था । रात-दिन एक कर दिए मैंने अपनी खोई हुई ज़मीन वापस पाने के लिए । सबसे पहले ढाबे वाली ज़मीन को छुड़ाने की कोशिश में लग गया । एग्रीमेंट पूरा होने के बावजूद वो लोग ज़मीन छोड़ने को राजी नहीं थे । बाहुबली होने का पूरा फायदा उठाया उन्होंने । हमारी कोई गलती न होने के बावजूद उन लोगों ने ज़मीन वापस देने के लिए 25 लाख रुपए की डिमांड कर दी । 25 रुपए जुटाना मुश्किल था हमारे लिए उस वक्त भला 25 लाख कहां से लाते। लेकिन साम-दाम, दंड-भेद सारे तरीके अपनाकर पैसों का जुगाड़ किया। उन दिनों को यादकर मुझे आज भी सिहरन होती है । एक-एककर सारी खोई हुई जायदाद वापस ली । फिर खेती करना शुरु किया। धीरे-धीरे हालत सुधरने लगे । पिताजी को उनके खर्चे के लिए हर रोज 100 रुपया अलग से देने लग गया ।

सवाल- अब तो आपने अपना ढाबा भी शुरु कर लिया है जिसका नाम है ‘मिडवे’ । काफी बड़ी संख्या में वर्कर भी आपके ढाबे में काम करते हैं । जिनको मेहनताना भी आप देते हैं । जरा बताइए इस ढाबे के बारे में ।


जवाब – एग्रीमेंट वाली जो जमीन हमनें वापस ली वो कई सालों से खाली पड़ी हुई थी । उस पर खेती का काम नहीं हो रहा था । हाईवे के किनारे होने की वजह से हमनें सोचा क्यों न इस पर ढाबा खोला जाए । आइडिया सबको पसंद आया और हो गया काम शुरु । नाम दिया गया ‘मिडवे यात्री प्लाजा’ । ये ढाबा रामसनेहीघाट के पास हाईवे पर है । आप कभी भी आइए आपका स्वागत है । हमने परिवहन विभाग से बात की तो पांच साल के लिए हमारे इस ढ़ाबे को उत्तर प्रदेश सरकार ने अनुबंधित भी कर लिया है । फैजाबाद से लखनऊ जाने वाली सभी सरकारी बसें हमारे इस ढाबे पर रुकती हैं। हम बस के सभी स्टाफ को खाना खिलाते हैं और प्रति बस 25 रुपया सरकार को देते हैं । जो कि पिछले 2 सालों से चल रहा हैं । अगली प्लानिंग इसी ढाबे के बगल में मेरिजलॉन बनवाने की हैं ।

सवाल- इतना सब कुछ होने के बाद क्या आप पिताजी से नाराज हुए  ?

जवाब- नाराज होकर क्या करूंगा आखिर मेरे पिताजी हैं वो । बल्कि वो ही मेरे से नाराज रहते हैं । और उनकी ये नाराजगी तब से है जब वो चाहते थे कि मैं बीएससी की पढ़ाई करूं लेकिन मैने बीए किया। एक बार तो उन्होंने इतना डांटा कि मैं नाराज होकर 18 साल की उम्र में मुंबई भाग गया।

सवाल- शुरुआती दौर में आपने दिल्ली में किन-किन न्यूज़ चैनलों में काम किया ?

जवाब- मैंने mh1 न्यूज़, इंडिया न्यूज, समाचार प्लस, न्यूज़ एक्सप्रेस में काम किया ।

सवाल- कुछ ऐसे लोगों के नाम बताइए जिन्होंने इस मुसीबत के दौरान आपकी सहायता की हो । आर्थिक रुप से न सही लेकिन मानसिक रुप से समझाया-बुझाया हो । आपके इस फैसले में आपके साथ रहे हो ।

जवाब- दिल्ली में पत्रकारिता करने के दौरान जिन लोगों ने मुझे सपोर्ट किया उनमें निखिल कुमार दूबे, आज तक के अनिल सिंह, इसके अलावा अतुल अग्रवाल और अमित सिंह ने बड़ी सहायता की । निखिल सर हर फैसले में मेरे साथ खड़े थे। हमेशा मार्गदर्शक की तरह काम किया ।

सवाल- मौका मिला तो क्या दोबारा मीडिया में आना चाहेंगे  ?

जवाब- बिल्कुल, भला ये भी कोई पूछने की बात है । आखिर पत्रकारिता मेरा पहला प्यार है । मैं कुछ भी हासिल कर लूं, कितना भी सफल क्यों न बन जाऊं लेकिन पत्रकारिता के बिना जीवन अधूरा है ।

सवाल- अगर कोई आपसे जुड़ना चाहे तो कैसे संपर्क कर सकता है ?


जवाब- मेरी ई-मेल आईडी vinay.panday1089@gmail.com के जरिए संपर्क कर सकता है ।

सवाल- ‘ग्राउंड ज़ीरो’ के बारे में क्या कहना चाहेंगे ?

जवाब- बहुत अच्छी पहल है जो आप लोग ऐसे लोगों की कहानियों को छाप रहे हैं, जिनके बारे में लोग नहीं जानते हैं लेकिन उनके बारे में जानना ज़रूरी है।  क्योंकि पता नहीं किस व्यक्ति के जीवन से किस को क्या सीख मिल जाए ।
                                                                                                             साभार- ग्राउंड ज़ीरो
(ग्राउंड ज़ीरो के अगले एपिसोड में पढ़िए मिसाल कायम करने वाले एक और धमाकेदार शख्स का इंटरव्यू, जो होगा हमारे और आपके बीच का )

(अगर आपके पास भी है किसी ऐसे शख्स की कहानी जिसने किया है सोचने पर मजबूर। वो आप खुद भी हो सकते हैं, आपका कोई जानने वाला हो सकता हैं, आपका कोई दोस्त या रिश्तेदार भी हो सकता है। तो आप हमें बताइए। हम करेंगे ‘ग्राउंड ज़ीरो’ से पड़ताल और छापेंगे उसकी मिसालभरी दास्तां। देखेंगे दुनिया उसकी नज़र से। )  

संपर्क-
ई-मेल कीजिए: vdvishaldubey175@gmail.com

फॉलो कीजिए:

ब्लॉग-      http://vishaldubeyaka3d.blogspot.in/

Facebook:  https://www.facebook.com/vishal.dubey.9256

Twitter:     https://twitter.com/Dubey3d

फोन कीजिए: +91 8800 777 275 , 7838 927 462

No comments:

Post a Comment